Tuesday, March 29, 2016

मझधार

काश कि मैने सोचा होता

कि यह कश्ती मुझे कहाँ ले जाएगी

क्योंकि आज जहाँ इसने मुझे पहुँचा दिया है 

वहाँ से ना आगे का रास्ता दिखाई देता है 

और ना ही पीछे का रास्ता मुझे आवाज़ लगा रहा है 

इस नदी के बीचों बीच नाव कि दिशा तय नहीं हो पा रही  

क्योंकि लहरों ने जकड़ रखा है  

इस नदी से बहुत दूर जाना चाहती हूँ 

पर यह मझधार मुझे फाँसे हुए है 

शायद अब मंज़िल का मिलना पहले से भी मुश्किल है 

शायद आँधी तूफ़ान थमने का इंतज़ार करना होगा  


                                                                                                                   - दिशा 

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